राष्ट्रीय राजमार्गों (National Highways) से हम सब गुज़रते हैं और अलग-अलग टोल प्लाज़ा पर पैसे भी देते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि राष्ट्रीय राजमार्गों (National Highways) पर बने ये Toll Plazas कैसे बनाए जाते हैं और ये काम कैसे करते हैं?
तो भाईसाब, राष्ट्रीय राजमार्गों को BOT, EPC या PPC मोड के ज़रिए बनाया जाता है और निर्माण, मेंटेनेंस और देख-रेख का सारा ज़िम्मा संभालती है सरकार की भरोसेमंद एजेंसी भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण यानी कि National Highways Authority of India (NHAI)।
हमारे देश में जब भी हाईवे बनते हैं, तो साथ ही साथ टोल प्लाज़ा का निर्माण भी कर दिया जाता है और सरकार द्वारा तय की गई दरों को ध्यान में रखकर टोल चार्जेस (Toll charges) लिए जाते हैं। अमूमन जो निजी कंपनी (Private Company) सड़क का निर्माण करती है, वही ये टोल भी कलेक्ट करती है।
यहाँ ये बताना भी ज़रूरी है कि टोल कलेक्शन के लिए एक नियत समय सीमा भी तय की जाती है। आप अगर NHTIS की वेबसाइट चेक करेंगे तो आपको देश भर के टोल प्लाज़ा की जानकारी मिल जाएगी और ये भी मालूम चल जाएगा कि उन्हें किस मोड के तहत बनाया गया है।
इसके अलावा आपको पोर्टल पर टोल प्लाज़ा से जुड़ी कुछ अन्य जानकारियाँ भी मिल जाएँगी। जैसे कि –
· हाईवे स्ट्रेच कितना लंबा है
· टोल पर कोई छूट है या नहीं
· टोल प्लाज़ा को कलेक्शन की परमिशन है या नहीं
· मंथली इंस्पेक्सन रिपोर्ट्स की स्थिति क्या है
· रेट रिविज़न ऑर्डर
· छूट-प्राप्त गाड़ियों की लिस्ट
· हाईवे की लंबाई
· टोल प्लाज़ा के पास मौजूद सुविधाओं की लिस्ट
· टोल रेट्स इत्यादि।
इन सबके अलावा प्रोजेक्ट डायरेक्टर, हेल्पलाइन नंबर, टोल कर्मी/प्रतिनिधि, नज़दीकी अस्पताल और पुलिस थाने की जानकारी आदि भी आपको मिल जाएगी। वहीं, आप प्रतिदिन के औसत ट्राफिक की जानकारी भी हासिल कर सकेंगे।
टोल प्लाज़ा में कैसे हुई FasTag की Entry?

कुछ समय पहले तक टोल प्लाज़ा पर सारा काम मैनुअल था। इसकी वजह से टोल प्लाज़ा पर अक्सर लंबी लाइनें देखने को मिलती थीं। लेकिन जब से टोल कलेक्शन के लिए FasTag जैसी टेक्नोलॉजी को अपनाया गया, टोल प्लाज़ा का कलेक्शन ईज़ी हो गया और गाड़ियों की लंबी कतारें दिखना भी बंद हो गईं। यहाँ तक कि किसी ज़माने में टोल कर्मियों और गाड़ी वालों के बीच जो लड़ाई होती थी, वो भी अब ना के बराबर हो गए हैं।
फरवरी 2020 की एक रिपोर्ट के मुताबिक FasTag के आने के बाद लोगों का waiting time करीब 69% तक कम हो गया है। इससे पहले टोल प्लाज़ा पर औसत waiting time करीब 464 सेकंड का था जो अब घटकर महज़ 150 सेकंड रह गया है। जानकारों का मानना है कि सरकार के इस कदम से सालाना आधार पर करीब 20,000 करोड़ रुपये की फ्यूल सेविंग संभव होगी। और तो और कार्बन एमिशन (carbon emission) भी 5 लाख टन तक कम हो जाएगा। लिहाज़ा कहा जा सकता है कि FasTag की इंट्री ने टोल प्लाज़ा सिस्टम को मज़बूत तो बनाया ही है, मगर साथ ही साथ अन्य फायदे भी पहुँचाए हैं।
हालांकि इस बीच कई मरतबा ये सवाल भी उठते आए हैं कि टोल प्लाज़ा की आखिर ज़रूरत क्या है? आइए, इसका जवाब भी जान लेते हैं।
टोल प्लाज़ा कितने ज़रूरी?
जानकारों का मानना है कि टोल टैक्स successive income एक अच्छा तरीका है। टोल टैक्स की मदद से राष्ट्रीय राजमार्गों के बेहतर रखरखाव में मदद मिलती है। ऊपर से पूरी प्रक्रिया में स्वायत्तता (autonomy) बनी रहती है। इसके अलावा बार-बार सरकारी प्रक्रियाओं से नहीं गुज़रना होता है और रेवेन्यू जनरेशन भी होता रहता है जिससे ultimately सड़कों के मेंटेनेंस में मदद मिलती है।
टोल प्लाज़ा से कितना रेवेन्यू हो जाता है?
रिपोर्ट्स बताती हैं कि साल 2022 में FasTag के ज़रिए करीब 55000 करोड़ रुपये से ज़्यादा का टोल रेवेन्यू जनरेट किया गया। वहीं औसत टोल कलेक्शन में भी करीब 46 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई। बता दें कि वर्ष 2021 में करीब 34778 करोड़ रुपये का टोल वसूला गया था।
भारत में टोल प्लाज़ा का भविष्य
खबरों की मानें तो भारत सरकार अगले कुछ समय में देश से टोल प्लाज़ा पूरी तरह से हटा सकती है। इनकी जगह GPS technology आधारित टोल फीस कलेक्शन को अस्तित्व में आते देखा जा सकता है। माना जा रहा है कि गाड़ियों की मूवमेंट के साथ ही आपके बैंक अकाउंट से निर्धारित टोल खुद-ब-खुद कट जाएगा और आपको 1 सेकंड के लिए भी कहीं रुकना नहीं पड़ेगा।
वैसे जब बात टेक्नोलॉजी की हो रही है तो आपको बता दें कि भारत के लॉजिस्टिक्स स्पेस में भी टेक्नोलॉजी का खासा उपयोग किया जा रहा है और वाहक ऐप इसका एक जीता-जागता उदाहरण है। वाहक एक ट्रांसपोर्ट ऐप है जिसकी मदद से ऑनलाइन लोड और लॉरी बुकिंग की जा सकती है। वाहक प्लेटफॉर्म पर ट्रांसपोर्टर्स कुछ ही मिनटों में ट्रक और लोड बुक कर सकते हैं, वो भी 0% कमीशन पर। आज 25 लाख से भी ज़्यादा ट्रांसपोर्टर्स वाहक ऐप यूज़ करते हैं।
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